
*नर्मदा बचाओ आंदोलन* _प्रेस विज्ञप्ति। 05.05.2020_
*श्रमिकों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ**अनशन 48 घण्टों तक आगे जारी!*
*रेल और सड़क परिवहन व्यवस्था, श्रमिकों का वेतन, राज्यों में समन्वय और सीमा खोलने पर चाहिए जवाब!*
देश भर के एक एक राज्य में फंसे प्रवासी श्रमिकों पर अत्याचार आज भी जारी है । मजदूर हजारों की संख्या में राज्य राज्य में फंसे हैं और महाराष्ट्र, गुजरात सहित कई राज्यों से मजदूरों की वापसी में शासन-प्रशासन का हस्तक्षेप कमजोर है तो उत्तर प्रदेश की सरकार सीमा बंद करने, खोलने की मनमानी जारी रखी है।एक नहीं, अनेक आदेश, राज्य एवं केन्द्र से जारी होते हुए भी लाखों मजदूरों को चिंता ने घेर के रखा है। उन्हें वेतन नहीं, राशन नहीं, सैकड़ों मजदूर चल रहे हैं ।रेलवे का इतना बड़ा नेटवर्क इस स्थितिमे काम मे लेना अभीतक नही के बराबर हुआ है।
कल 4 मई से हमने भूख हड़ताल शुरू किया 24 घण्टे के चेतावनी उपवास के साथ। 24 घण्टे में तहसीलदार, अतिरिक्त जिला अधिकारी से हुई बातचीत में वे बता रहे थे, अपनी असमर्थता। उन्होंने महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश की सीमा पर शांति प्रस्थापित करने की बात की ।4 तारीख सुबह से निश्चित ही कुछ दिन चलकर आये श्रमिकों को ट्रक, आयशर-टेंपो जैसे वाहनों में बिठाकर उत्तर प्रदेश की सीमाओं की तरफ भेजना शुरू हुआ है । लेकिन कईयों को वाहन चालक फंसा रहे हैं। पूरा पैसा वसूल कर रास्ते पर बीच में छोड़ा जा रहा है। 1500 – 1700 किमी. दूरी तय करने की सोचकर पैदल चले श्रमिक हमारे उपवास स्थल पर पहुंचते रहे हैं तो पता चलता है कि उन्हें पहले मालिकों ने लूटा, काम की तनख्वाह ही क्या, अनाज भोजन भी न देते हुए भगाया है। 24 घंटे की चेतावनी के बावजूद श्रमिकों की स्थिति में कोई फर्क नही आया है। हमने इसीलिए उपवास को आगे 48 घंटो तक, आवाहन के रूप में आगे बढ़ाना तय किया है।ऐसी स्थिति में मुम्बई, नाशिक, भिवंडी से, या सूरत से आए मजदूर 24 घण्टे में हमारे अनशन स्थल पर पहुंचे तो कईयों के पास पैसा नहीं था, तो कुछ चप्पल ढूंढ रहे थे….. दुकान बंद थी…… जिसके बिना चलना नामुमकिन था। साइकिल पर आये थोड़े से श्रमिक, साईकिल चलाने की स्थिति में भी नहीं थे, गुस्सा थे । मध्य प्रदेश-महाराष्ट्र की सीमा खुली कर दी है ।
खबरें तो आ रही है कि शासन ने नये नये अधिकारी नियुक्त किए हैं लेकिन उनमें से किसी का भी फोन पर संपर्क होना नामुमकिन साबित हो रहा है।आज भी नंदुरबार के अलीराजपुर, बड़वानी के आदिवासी फंसे है, गुजरात में, जामनगर, राजकोट, जुनागढ़, द्वारका, अमरेली तक के जिले-जिले में। उन्हें लाने में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शासन का योगदान भी नहीं मिल पाया। बड़ी राशि देकर हमारे पीछे पड़ने के बाद, वाहन साधन से मजदूर वापस आ पाये। कुछ थोड़े किसानों को छोड़कर अन्य किसान श्रम चूसने के बाद आदिवासियों को अब जल्द से जल्द भगाना चाहते हैं कोई कुएं में जहर डालकर मारने की धमकी दे रहा है तो कोई निजी वाहन के लिए 2500/- रु. प्रति व्यक्ति देने के लिए मजबूर करना चाह रहा है। कईयों का अनाज खत्म होकर अब भूखमरी शुरू हुई हैयही हालात सब दूर की होते हुए न रेल न सड़क परिवहन से मजदूरों की वापसी में राज्य सरकारें अपना हस्तक्षेप या योगदान दे रही है नहीं श्रमिकों को मृतवत होकर 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान की स्थिति में चलने से दर्द महसूस करते या सुलझाओ निकालते दिखाई दे रहे हैं।
हम उपवास जारी रखते हुए अपेक्षा करते हैं कि राहत के कार्य में जुटे संगठन, संस्थाएं, सामाजिक समूह भी इन मुद्दों की गंभीरता जानकर अपनी समर्थन आत्मक कृति शुरू करें कोई पत्र लिखें कोई मुहिम चलाएं इस स्थिति में शासन की जगह समाज लेता ही रहा है अब ऐसे समाजसेवियों को भी आगे आना चाहिए जो अपना वाहन साधन, डीजल ड्राइवर इत्यादि सहायता दे सके। हम देख रहे हैं, हर निर्णय मनमानी से हो रहा है। राज्य ही क्या, जिलावार ली भूमिका में फर्क है। केंद्र शासन के आदेश हो या राज्य शासन के, न सही अर्थ न सही अमल ऐसी स्थिति में हमें अहिंसक सत्याग्रह जारी रखना ही होगा अन्याय सहना अन्याय थोपने के इतना ही अस्वीकार है ।
*एमडी चौबे, मेधा पाटकर*
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