मैं शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020, से ‘पवित्र आर्थिकी’ (#SacredEconomy) के लिए अनिश्चित कालीन उपवास पर हूँ. चूँकि मैं एक रंगकर्मी हूँ आप कह सकते हैं कि यह उपवास एक नाटक है, यह भी कि एक अहिंसक आतंकवादी का बंधक-नाटक. वास्तव में मैंने खुद को सत्य का बंधक बना लिया है और अभी एक छोटे से कमरे में हूँ, जिसका ठिकाना ज़ाहिर नहीं किया है. मैं आपको सोचने के लिए बाध्य करना चाहता हूँ.
सच बोलने के लिए मैंने खुद को भूख की पीड़ा के हवाले किया है. हम लोग राक्षसी आर्थिकी के बंधक हो गए हैं. इस आर्थिकी ने प्रकृति का विनाश किया है, गरीब को और गरीब बनाया है और सब लोगों को मशीन बना दिया है. भगवान ने अब राक्षस को सजा दी है. वह अब मर रहा है.
लेकिन क्या हम उसे ढहाने के लिए तैयार हैं? क्या हम प्रकृति के नियमों का पालन करने के लिए तैयार हैं? या उस नैतिक नियम का, जो हमें एक बराबरी का समाज, सरल समाज बनाने के लिए कहता है.
सोचिये ! मैं आश्वस्त हूँ आप सच्चाई से सोचेंगे ! मैं आश्वस्त हूँ यह बंधक-नाटक सफल होगा. हमारे इस आवाहन का जवाब सोशल मीडिया पर दें. कृपया लॉक डाउन का पालन करें.
प्रसन्ना
नाटक लेखक व निर्देशक
ग्राम सेवा संघ
अनुवाध : सुनील सहस्रा भूढ़े, दार्शनिक & सामाजिक कार्यकर्ता